अच्छा लगता है !

तेरा ना होना अब अच्छा लगता है ,

तेरी यादों मे खोना अच्छा लगता है !
तेरा कुछ न कहना अब अच्छा लगता है,

इन स्याह रातो मे मुझे रोना अच्छा लगता है !
तेरा कुछ न सुनना अब अच्छा लगता है ,

टूटे ख्वा़बो को बुनना अच्छा लगता है !
तेरा हर शाम मे न होना अब अच्छा लगता है ,

खुद को तन्हाईयो मे डूबोना अच्छा लगता है !
तेरा मुझे भूल जाना अब अच्छा लगता है ,

क्योंकी मुझे किस्मत को हराना अच्छा लगता है !
©mayank_sonwane

” कल “

आज टूटा हूँ , तो क्या हुआ कल फिर जुड़ जाऊँगा!

दरिया से बिछड़ा हूँ , कल सागर से मिल जाऊँगा!
आज अंधेरा हूँ , तो क्या हुआ कल सवेरा बन जाऊँगा!

भीड़ मे भी अकेला हूँ , कल सबका साथ निभाऊगा!
आज मिट्टी हूँ , तो क्या हुआ कल सुराही बन जाऊँगा!

काटो से घिरा हूँ , कल फूलो से टकराऊँगा!
आज पत्थर हूँ, तो क्या हुआ कल चट्टान बन जाऊँगा!

हवाओ का साथी हूँ ,कल तूफान बन जाऊँगा!
आज फकिर हूँ ,तो क्या हुआ कल राजा बन जाऊँगा!

सिक्को को तरसा हूँ , कल खज़ानो मे डुब जाऊँगा!
आज दर्शक हूँ , तो क्या हुआ कल अभिनेता बन जाऊँगा!

गुमसुम जो बैठा हूँ , कल तालियो मे गूंज जाऊँगा!

“पतंग”

उड़ती पतंगे देख रहा था ,

भोली सी उन आँखो से !
ख्वाब के मांझे बुन रहा था..

नन्हे-नन्हे हाथो से !
कैसे पर वो पतंग खरीदे ..

जो थी इतने रूपयो की !
एक रोटी की भी भूख थी उसको ..

बस तलब थी ..ये तो उन अखियो की !

  ” काला सूरज “

वो चीख रही थी ..उस खामोशी मे ..

और हँस रहे हैवान थे ..
उदय था अब एक काला सूरज,

गुमसुदा इंसान थे !
रक्त जिस्म का उसके वो तो

भर रहे थे प्यालो मे …
शर्म भी अब तो शर्मिंनदा थी ..

हवस के मैखानो मे !
बाँध के अपनी मुठ्ठी अब वो,

गिन रही थी रूकती सांसे ,
रहम की गुहार लगा कर…

थक चुकी थी जिसकी आँखे..
रूह भी उसकी सोच रही थी ….
कैसी है ये पीड़ा मेरी , कैसा मेरा दर्द..

किस मिट्टी का बना है ये जो खुद को कहता मर्द !
रूक-रूक कर जो बारी-बारी ,

हैवान का चेहरा बदल रहा है !
स्याह सूरज के ताप से ..

अब तो इंसान का पूतला पिघल रहा है !
एक नारी से ही जन्म लिया तू ,

दूजी को फिर क्यू निगल रहा है !

     “खिलौना”

​ना जाने वो बच्चा किससे खेलता होगा ,

जो वक्त की बेरूखी झेलता होगा !

 सर्द रातो मे भी सिर्फ आसमां ओढ़ता होगा ,

शायद वो खिलौने से नही , रब उस से खेलता होगा!

बाकी है !

​ऑखे खुल गयी ,पर नींद अब भी बाकी है !

नज़दीकीया है , फिर भी दूरीयाँ काफी है !


चले तुम गये , पर बाते अब भी बाकी है !

आज रात चाँद तो है,फिर भी अंधेरा काफी है!

         “Inseparable” 


it was a cold Sunday morning. she was sitting on a bench and lost in her thoughts. 

suddenly she heard “trin trin”. 

it was the newspaper vendor.

as soon as she got the news paper in her hands she started jumping with joy.

the headline read – 

 “rahul singh won the international wrestling championship” 

rahul singh was a national level wrestler . 

she started showing newspaper to all her new friends.  

she was the happiest person on the earth. she was proudly telling them about her son. and started telling his childhood stories . 

all her friends were listening to her with tears in their eyes. 


it was the fifth day her son left her in this old-age home. 


mother’s love is eternal. 



  – a tiny tale by mayank 

” गुनाह “

pexels-photo-268833​ये ना तेरा गुनाह था, ना मेरा.. !

गुनाहगार तो वक्त था..

जो ना तेरा था , ना मेरा ..


 ये ना तेरा गुनाह था, ना मेरा.. !

गुनाहगार तो लफ्ज़ थे….

 जो ना तेरे थे , ना मेरे ….


गुनाहगार तो ये किस्मत भी थी ! 

ना मै तेरा था….

ना तू मेरी थी !

from the heart of a writer  ” शब्द “

 

भावनाएँ उकेरी है.. कागज़ पर ,
जो ना समझे , तो बस ‘शब्द’ है !
जो समझ लिया ,वो निःशब्द है !

गहराई है ,इनमे सागर सी ..
तो नभ की उँचाई  है !

यथार्थ है .. इस जीवन का ..
तो चिता की सच्चाई है !

व्यथा है उस..प्रेम की ..
तो प्रिये की अभिलाषा है !
यौवन की आग है …
तो हृदय की वो आशा है !

माँ का मातृत्व है …
तो पिता का पितृत्व भी !
बहनो का स्नेह …
उन मित्रो का मित्रत्व भी !

ये तन मेरा कागज़ है ..
रक्त मेरी स्याही है !
मन मेरी कलम …
और आत्मा अनुभव की सुराही है !

ये शब्द ही .. मेरा मोल है.. 
जो ना समझे , तो बेमोल है!
जो समझ लिया ,तो अनमोल है !