” कल “

आज टूटा हूँ , तो क्या हुआ कल फिर जुड़ जाऊँगा!

दरिया से बिछड़ा हूँ , कल सागर से मिल जाऊँगा!
आज अंधेरा हूँ , तो क्या हुआ कल सवेरा बन जाऊँगा!

भीड़ मे भी अकेला हूँ , कल सबका साथ निभाऊगा!
आज मिट्टी हूँ , तो क्या हुआ कल सुराही बन जाऊँगा!

काटो से घिरा हूँ , कल फूलो से टकराऊँगा!
आज पत्थर हूँ, तो क्या हुआ कल चट्टान बन जाऊँगा!

हवाओ का साथी हूँ ,कल तूफान बन जाऊँगा!
आज फकिर हूँ ,तो क्या हुआ कल राजा बन जाऊँगा!

सिक्को को तरसा हूँ , कल खज़ानो मे डुब जाऊँगा!
आज दर्शक हूँ , तो क्या हुआ कल अभिनेता बन जाऊँगा!

गुमसुम जो बैठा हूँ , कल तालियो मे गूंज जाऊँगा!

     “खिलौना”

​ना जाने वो बच्चा किससे खेलता होगा ,

जो वक्त की बेरूखी झेलता होगा !

 सर्द रातो मे भी सिर्फ आसमां ओढ़ता होगा ,

शायद वो खिलौने से नही , रब उस से खेलता होगा!

बाकी है !

​ऑखे खुल गयी ,पर नींद अब भी बाकी है !

नज़दीकीया है , फिर भी दूरीयाँ काफी है !


चले तुम गये , पर बाते अब भी बाकी है !

आज रात चाँद तो है,फिर भी अंधेरा काफी है!

from the heart of a writer  ” शब्द “

 

भावनाएँ उकेरी है.. कागज़ पर ,
जो ना समझे , तो बस ‘शब्द’ है !
जो समझ लिया ,वो निःशब्द है !

गहराई है ,इनमे सागर सी ..
तो नभ की उँचाई  है !

यथार्थ है .. इस जीवन का ..
तो चिता की सच्चाई है !

व्यथा है उस..प्रेम की ..
तो प्रिये की अभिलाषा है !
यौवन की आग है …
तो हृदय की वो आशा है !

माँ का मातृत्व है …
तो पिता का पितृत्व भी !
बहनो का स्नेह …
उन मित्रो का मित्रत्व भी !

ये तन मेरा कागज़ है ..
रक्त मेरी स्याही है !
मन मेरी कलम …
और आत्मा अनुभव की सुराही है !

ये शब्द ही .. मेरा मोल है.. 
जो ना समझे , तो बेमोल है!
जो समझ लिया ,तो अनमोल है !