अच्छा लगता है !

तेरा ना होना अब अच्छा लगता है ,

तेरी यादों मे खोना अच्छा लगता है !
तेरा कुछ न कहना अब अच्छा लगता है,

इन स्याह रातो मे मुझे रोना अच्छा लगता है !
तेरा कुछ न सुनना अब अच्छा लगता है ,

टूटे ख्वा़बो को बुनना अच्छा लगता है !
तेरा हर शाम मे न होना अब अच्छा लगता है ,

खुद को तन्हाईयो मे डूबोना अच्छा लगता है !
तेरा मुझे भूल जाना अब अच्छा लगता है ,

क्योंकी मुझे किस्मत को हराना अच्छा लगता है !
©mayank_sonwane

बाकी है !

​ऑखे खुल गयी ,पर नींद अब भी बाकी है !

नज़दीकीया है , फिर भी दूरीयाँ काफी है !


चले तुम गये , पर बाते अब भी बाकी है !

आज रात चाँद तो है,फिर भी अंधेरा काफी है!

” गुनाह “

pexels-photo-268833​ये ना तेरा गुनाह था, ना मेरा.. !

गुनाहगार तो वक्त था..

जो ना तेरा था , ना मेरा ..


 ये ना तेरा गुनाह था, ना मेरा.. !

गुनाहगार तो लफ्ज़ थे….

 जो ना तेरे थे , ना मेरे ….


गुनाहगार तो ये किस्मत भी थी ! 

ना मै तेरा था….

ना तू मेरी थी !

from the heart of a writer  ” शब्द “

 

भावनाएँ उकेरी है.. कागज़ पर ,
जो ना समझे , तो बस ‘शब्द’ है !
जो समझ लिया ,वो निःशब्द है !

गहराई है ,इनमे सागर सी ..
तो नभ की उँचाई  है !

यथार्थ है .. इस जीवन का ..
तो चिता की सच्चाई है !

व्यथा है उस..प्रेम की ..
तो प्रिये की अभिलाषा है !
यौवन की आग है …
तो हृदय की वो आशा है !

माँ का मातृत्व है …
तो पिता का पितृत्व भी !
बहनो का स्नेह …
उन मित्रो का मित्रत्व भी !

ये तन मेरा कागज़ है ..
रक्त मेरी स्याही है !
मन मेरी कलम …
और आत्मा अनुभव की सुराही है !

ये शब्द ही .. मेरा मोल है.. 
जो ना समझे , तो बेमोल है!
जो समझ लिया ,तो अनमोल है !